जब भी छत पर आया चाँद।
देख हमें शरमाया चाँद।
पूछा मैंने कहाँ मिलना है,
उसने मुझे दिखाया चाँद।
देख तेरी चंदा सी सूरत,
उसने कहीं छिपाया चाँद।
सोने को तो दिन है पूरा!
कहकर रात जगाया चाँद।
एक तुम्हारे वादे पर ही,
मैंने मांग सजाया चाँद।
झील का पानी छलका-छलका,
किसने वहां डुबोया चाँद।
सुख-दुःख सा घटता बढता है,
अपना कभी पराया चाँद।
निकल चली फिर लाँघ देहरी,
सूरज ने भरमाया चाँद।
आँखें बरसती रहीं रात भर,
तेरे ग़म ने पिघलाया चाँद।
सुनो सजन! जल्दी घर आओ,
मेरी गोद में आया चाँद ।
* rakesh jajvalya.
............................... .......आगे की पंक्तियाँ अनिल "मासूम" जी की कलम से॥
बरसों बाद किसी ने आकर,
हम को खूब सुनाया चाँद।
लोग ये कहते ऊबड़-खाबड़,
तुम ने खूब सजाया चाँद।
मुझसे खफ़ा कल से बैठा था,
तुम ने रात मनाया चाँद।
चंपा ने रोटी की सूरत,
रात को घर पे खाया चाँद।
मैं कल जब छत पे ना आया,
मेरी छत पे आया चाँद।
चाँद चाँद तभी लगा जब,
इस कागज़ पर आया चाँद।
तुम कहते हो ग़ज़ल लिखी है,
हम ने तो बस पाया चाँद।
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1 comment:
bahut sundar..
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