बदरी फिर घिर आई है।
कैसी उदासी छाई है.............बदरी.......
फिर सावन नैनों से बरसा।
फिर दिल तेरी याद में तरसा।
याद तुम्हारी लाई है.............बदरी........[1]
रुत गीली, पलकें गीली हैं।
बूंदें भी जलती तीली हैं।
रिमझिम आग लगाई है.............बदरी.....[2]
इक-इक दिन आँखों में काटे।
दरवाज़ों से सुख -दुःख बांटें।
तेरे बिन तन्हाई है..............बदरी.....[3]
सोर- संदेसे भी तुम भूले।
नागन से डसते हैं झूले।
सुनी मेरी अमराई है.......बदरी.......[4]
मैं ना अब मैं रही पिया जी।
मेरा ना अब मेरा ही जिया जी।
ये तेरी परछाई है............बदरी.....[5]
अब जब तुम घर को आओगे।
वापस ना यूँ जा पाओगे।
ऐसी कुण्डी मंगाई है.........बदरी....[6]
बदरा फिर घिर आई है।
कैसी उदासी छाई है.............बदरी...
* राकेश जाज्वल्य
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कैसी उदासी छाई है.............बदरी.......
फिर सावन नैनों से बरसा।
फिर दिल तेरी याद में तरसा।
याद तुम्हारी लाई है.............बदरी........[1]
रुत गीली, पलकें गीली हैं।
बूंदें भी जलती तीली हैं।
रिमझिम आग लगाई है.............बदरी.....[2]
इक-इक दिन आँखों में काटे।
दरवाज़ों से सुख -दुःख बांटें।
तेरे बिन तन्हाई है..............बदरी.....[3]
सोर- संदेसे भी तुम भूले।
नागन से डसते हैं झूले।
सुनी मेरी अमराई है.......बदरी.......[4]
मैं ना अब मैं रही पिया जी।
मेरा ना अब मेरा ही जिया जी।
ये तेरी परछाई है............बदरी.....[5]
अब जब तुम घर को आओगे।
वापस ना यूँ जा पाओगे।
ऐसी कुण्डी मंगाई है.........बदरी....[6]
बदरा फिर घिर आई है।
कैसी उदासी छाई है.............बदरी...
* राकेश जाज्वल्य
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3 comments:
वाह ...! बड़ा ही मनभावन गीत है...पढ़कर आनंद आया ..!!!आभार
bada manbhavan geet hain
वर्षा ऋतू में यह गीत दिल को छू गया सुंदर अभिव्यक्ति बधाई
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