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उनके रूठे-रूठे दिल को यूँ अक्सर बहलायें हम।
सच्चे इश्क की ख़ातिर चाँद की झूठी कसमें खाएं हम।
खुदा मुआफ़ करे ..... चाँद के चेहरे के लिए।
* राकेश जाज्वल्य।
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उनके रूठे-रूठे दिल को यूँ अक्सर बहलायें हम।
सच्चे इश्क की ख़ातिर चाँद की झूठी कसमें खाएं हम।
खुदा मुआफ़ करे ..... चाँद के चेहरे के लिए।
* राकेश जाज्वल्य।
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2 comments:
सुंदर अतिसुन्दर बधाई
बेहतरीन रचना...
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