Monday, July 12, 2010

चाँद की झूठी कसमे........(त्रिवेणी.)

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उनके रूठे-रूठे दिल को यूँ अक्सर बहलायें हम।
सच्चे इश्क की ख़ातिर चाँद की झूठी कसमें खाएं हम।

खुदा मुआफ़ करे ..... चाँद के चेहरे  के लिए।

* राकेश जाज्वल्य।
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2 comments:

Sunil Kumar said...

सुंदर अतिसुन्दर बधाई

Udan Tashtari said...

बेहतरीन रचना...