Saturday, July 31, 2010

तू उठा कर आग सूरज से जला अंगीठियाँ..

अभी ले मज़ा तूफानों का, के साहिल दूर है।
कुछ हौसलों की बात कर, के मंजिल दूर है।

तू भी सिक्कों की खनक सी मीठी बात कर,
कड़वे सच से जीत की हर महफ़िल दूर है।

उस तरफ दीवार के है दुनियां प्यार की,
जरा पँख तू मजबूत कर, के कातिल दूर है।

तू उठा कर आग सूरज से जला अंगीठियाँ,
दिन हैं बारिश के मगर अभी बादल दूर है।

देख के ये दिन दुबारा आयेंगे अब फिर नहीं,
तू ना रुक कल के लिए, के हासिल दूर है।

: राकेश जाज्वल्य
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2 comments:

Asha Joglekar said...

है दीवारों के उधर इक दुनियां प्यार की,
ज़रा पँख तू मजबूत कर, के कातिल दूर है।



बढिया गज़ल ।

कडुवासच said...

... behatreen gajal !!!