Thursday, July 1, 2010

आवाज से परे......

गूंजेगी एक धुन यहाँ अब साज़ से परे।
मुझको सुनोगे तुम अगर आवाज़ से परे।

हम आ बसेंगे दिल में तेरे, जैसे ख़ामोशी से,
बसता है ख़्वाब आँख में अहसास से परे।

तुमको नहीं यकीन अगर मेरी वफ़ाओं का,
बस छू कर देखना मुझे तुम साँस से परे।

होगा असर झलक का मेरे, दिल पर इस कदर,
सज़दा करोगे गलियों में, तुम लाज से परे।

ठंडी हवा के झोंके सा कुछ कह गया हूँ मैं,
सोचो तो बात पाओगे, अल्फाज़ से परे।

: राकेश जाज्वल्य ०१/०७/२०१०
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