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बात मुश्किल, मगर हो जाए, ...मुहब्बत हो।
कुबूल दिल की दुआ हो जाए, ...मुहब्बत हो।
नफरतों का ये सफ़र क्यूँ हो उमर भर जारी,
तल्खियाँ दूर कहीं खो जाए, ....मुहब्बत हो।
ज़ख्म कितने भी लगे हों, मगर ख़ुदा मेरे,
बह के आँसू दवा हो जाए, ....मुहब्बत हो।
हर कदम पर कोई नेमत हो सबकी झोली में,
दुःख जो आये कहीं खो जाए,...मुहब्बत हो।
चाहे काँटे कहीं बरसे हों, किसी के लब से,
फूल बरसे जिधर वो जाए,...मुहब्बत हो।
बात मुश्किल, मगर हो जाए, ...मुहब्बत हो।
कुबूल दिल की दुआ हो जाए, ...मुहब्बत हो।
* राकेश जाज्वल्य ११।०७।२०१०।
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