Thursday, September 23, 2010

आँखों में सबकी चाँद का दरिया....

मैं किसी ना किसी बहाने से,
जीत कर आऊंगा ज़माने से।

ज़िन्दगी से तेरी ग़ज़ल बेहतर,

सुर लगते तो  हैं लगाने से।

अब दवा लेना मैंने छोड़ दिया,

दर्द घटने लगा है गाने से।

तेरे आने से कुछ निखरता हूँ,

कुछ बिखरता हूँ तेरे जाने से।

आँखों में सबकी चाँद का दरिया,

तारे बहते हैं दिल दुखाने से।

सर्द रातों में आग के जैसी,

प्यास भड़की है लब मिलाने से।

मुस्कुराने से बात बनती है,

बात बढ़ती है खिलखिलाने से।

इश्क़ तेरा ना ग़लतफ़हमी हो,

बच के रहना तू आज़माने से।

: राकेश जाज्वल्य २३.०९.१०

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3 comments:

संजय भास्‍कर said...

मेरि तरफ से मुबारकबादी क़ुबूल किजिये.

संजय भास्‍कर said...

bahut khoob Rakesh ji ...........me to fan ho gaya apka

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।