तेरे नैन बड़े बदमाश.......तेरे नैन बड़े..
तेरे नैन बड़े बदमाश.......तेरे नैन बड़े..
साँझ-सवेरे मुझको ताकें,
उड़े फुर्र फैलाएं पाँखें.
मेरी उनीदी अंखियों से,
चाँद ढले तक करके बातें,
मुझे लेने न दें साँस......तेरे नैन बड़े...[1]
नैनों में इक कश्ती कोई,
सपनों के तूफां में खोई.
मैंने जब जब कि कोशिशें,
लहरों में पतवारें बोई,
डूबे टखनों तक बांस.......तेरे नैन बड़े...[2]
कभी फ़लक पर इनके डेरे,
बन के बादल पर्वत घेरे.
कागज़-कागज़, धरती-धरती,
ओस गिराए लफ्ज़ बिखेरे.
बनें नर्म मुलायम घांस....तेरे नैन बड़े...[3]
तेरे नैन बड़े बदमाश.......तेरे नैन बड़े...
तेरे नैन बड़े बदमाश.......तेरे नैन बड़े...
: राकेश जाज्वल्य. 29.09.10.
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