यूँ गर्दिशों के दौर में पलने का मज़ा लें.
धुआँ-धुआँ सी ज़िन्दगी, जलने का मज़ा लें.
जो उसकी ये फ़ितरत है के हँसता है गिराकर,
तो तन के उठ खड़े हों आ चलने का मज़ा लें.
रखें ज़हन में चाँद-सा अहसास खुशनुमा,
बढ़ने का लें मज़ा कभी ढ़लने का मज़ा लें.
बोसे रखे थे उसने जिन पलकों पे प्यार के,
वो पलकें उसकी याद में मलने का मज़ा लें.
कभी बादलों के रूप हम उड़ें हवाओं में,
कभी बागों में उगें, बढ़ें, फलने का मज़ा लें.
: राकेश जाज्वल्य . १२ .११ .१०
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धुआँ-धुआँ सी ज़िन्दगी, जलने का मज़ा लें.
जो उसकी ये फ़ितरत है के हँसता है गिराकर,
तो तन के उठ खड़े हों आ चलने का मज़ा लें.
रखें ज़हन में चाँद-सा अहसास खुशनुमा,
बढ़ने का लें मज़ा कभी ढ़लने का मज़ा लें.
बोसे रखे थे उसने जिन पलकों पे प्यार के,
वो पलकें उसकी याद में मलने का मज़ा लें.
कभी बादलों के रूप हम उड़ें हवाओं में,
कभी बागों में उगें, बढ़ें, फलने का मज़ा लें.
: राकेश जाज्वल्य . १२ .११ .१०
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2 comments:
बोसे रखे थे उसने जिन पलकों पे प्यार के,
वो पलकें उसकी याद में मलने का मज़ा लें.
वाह ..बहुत खूबसूरत गज़ल ..
बेहद उम्दा गज़ल्।
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