Saturday, November 13, 2010

मैं चाँद-सा अक्सर हुआ......

जब तुझसे तर-बतर हुआ.
मैं और भी बेहतर हुआ.

जब भी बहा मैं आँखों से ,
तेरी उँगलियों पर घर हुआ.

होना जुदा तुमसे कभी,
चाहा नहीं था, पर हुआ.

तू ज़ेहन में था ख्याल-सा,
मैं लफ्ज़ दर-बदर हुआ.

ये इश्क़ खां-मख्वाह ही,
कब जाने मेरे सर हुआ.

बढ़ा कभी, घटा कभी,
मैं चाँद-सा अक्सर हुआ.

सुना है तेरे पास जो,
था दिल कभी, पत्थर हुआ.

: राकेश जाज्वल्य. १२।११।१०
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5 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बढ़ा कभी, घटा कभी,
मैं चाँद-सा अक्सर हुआ.

सुना है तेरे पास जो,
था दिल कभी, पत्थर हुआ.

बहुत खूबसूरत गज़ल ..

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर गज़ल्।
बाल दिवस की शुभकामनायें.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (15/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com

meemaansha said...

बढ़ा कभी, घटा कभी,
मैं चाँद-सा अक्सर हुआ.

सुना है तेरे पास जो,
था दिल कभी, पत्थर हुआ.
charming lines...dil ko chhuti hui karib se gujar gayi ...bakhuda!!
kabhi hamare Blog pr b tashreef laiye...

meemaansha said...

बढ़ा कभी, घटा कभी,
मैं चाँद-सा अक्सर हुआ.

सुना है तेरे पास जो,
था दिल कभी, पत्थर हुआ.
charming lines...dil ko chhuti hui karib se gujar gayi ...bakhuda!!
kabhi hamare Blog pr b tashreef laiye...

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

एक अच्छी ग़ज़ल !
लिखते रहो प्यारे