हवाओं में बारिश की बूंद गुनगुनाती है,
भीगे पत्तों सी तुम्हारी याद आती है.
बरसात में कहीं से घूम कर लौटो,
गीली मिटटी भी घर के भीतर आती है.
मिल भी जाते हैं ज़िस्मों से जिस्में,
और दूरियां दिलों की रह भी जाती है.
जिसमे दामन पर कोई दाग ना लगे,
अक्सर वो मोहब्बत बेवज़ह कहलाती है.
बनाता है बार- बार वो रेत में घरोंदें,
हर बार आँखों में उम्मीद झिलमिलाती है.
दोस्तों मेरे घर के उसे इशारे ना करो,
नदी क्या समंदर का पता पूछ कर जाती है.
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: राकेश जाज्वल्य
भीगे पत्तों सी तुम्हारी याद आती है.
बरसात में कहीं से घूम कर लौटो,
गीली मिटटी भी घर के भीतर आती है.
मिल भी जाते हैं ज़िस्मों से जिस्में,
और दूरियां दिलों की रह भी जाती है.
जिसमे दामन पर कोई दाग ना लगे,
अक्सर वो मोहब्बत बेवज़ह कहलाती है.
बनाता है बार- बार वो रेत में घरोंदें,
हर बार आँखों में उम्मीद झिलमिलाती है.
दोस्तों मेरे घर के उसे इशारे ना करो,
नदी क्या समंदर का पता पूछ कर जाती है.
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: राकेश जाज्वल्य
1 comment:
बनाता है बार- बार वो रेत में घरोंदें,
हर बार उसकी आँखों में उम्मीद झिलमिलाती है.
bahut badhia
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