Wednesday, June 16, 2010

यूँ तेरा नाम.........

यूँ तेरा नाम ज़माने से छिपाया हमने,
सी लिए होंठ, हर इक लफ्ज़ मिटाया हमने।

हैं तलबगार मगर तुझको ना चुरायेंगे,
ऐसे पाया भी तो सच कहिये क्या पाया हमने।

बदली बदली सी है बहती हवा ज़माने की,
इसमें देखा नहीं अपना कहीं साया हमने।

अब भी है प्यार मुहब्बत, बढ़के सांसों से,
कभी सोचा ही नहीं तुमको पराया हमने।

ये चाँद कब से है खिड़की पे आकर अटका,
अपना चेहरा ना कभी उससे हटाया हमने।

तुम भी आओ तो ये दुनिया ज़रा मुकम्मल हो,
यूँ इसे सब की हँसी से है सजाया हमने।

* राकेश जाज्वल्य.........१७।०६।२०१०।
****************************

2 comments:

श्यामल सुमन said...

बदली बदली सी है बहती हवा ज़माने की,
इसमें देखा नहीं अपना कहीं साया हमने।

सुन्दर भाव की पंक्तियाँ। वाह।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

दिलीप said...

waah bahut sundar gazal...