इक नशा सा तारी है।
इश्क बुरी बीमारी है।
ख़ुदा कहाँ इंसानों जैसा,
उसकी भी लाचारी है।
जिस्मों को क्या गाली देना,
रूह जहाँ बाज़ारी है।
मर कर तो कुछ हल्का हो लूँ,
तुझ बिन हर पल भारी है।
प्यार में जी के देख लिया है,
अब मरने की बारी है।
चाँद को कल इक फूल दिया था,
तब से वो आभारी है।
जब से तुमने मुड़कर देखा,
दिल का धडकना जारी है।
इश्क तो होगा होते- होते,
पहली शर्त तो यारी है।
* राकेश जाज्वल्य २५।०६।१०।
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ख़ुदा कहाँ इंसानों जैसा,
उसकी भी लाचारी है।
जिस्मों को क्या गाली देना,
रूह जहाँ बाज़ारी है।
वाह लाजवाब आभार बधाई
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