जिस दिन बातों में बेर हुई।
घर से निकलते देर हुई।
मेरी ग़ज़लें महज़ शब्द थे,
हँसी तुम्हारी शेर हुई।
कहना-सुनना भर-भर आँखें,
फिर ना कहना देर हुई।
यूँ तेजी से बदला मौसम,
कच्ची अमियाँ चेर हुई।
गिन-गिन उँगली उमर बिताई,
यूँ ही देर सबेर हुई।
थी छटांक सी दिल में मुहब्बत,
तुमसे मिल कर सेर हुई।
* राकेश जाज्वल्य २१।०९।१०।
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बेर = समय।
चेर= वक्त से पहले आम के छोटे फलों का कड़ा हो जाना।
छटांक/ सेर= पुराने दौर के माप/ वज़न।
4 comments:
bahut acchhi nazm.
बहुत बढिया लगी आपकी ये नज्म....
आभार्!
थी छटांक सी दिल में मुहब्बत,
तुमसे मिल कर सेर हुई।
खूबसूरत ग़ज़ल है .. लाजवाब शेर ..... मज़ा आ गया पढ़ कर ...
खूबसूरत ग़ज़ल है .. लाजवाब शेर ...
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