Wednesday, November 4, 2009

सड़क के इस छोर पर......

घर के सामने से जाती हुई
सीधी सड़क पर
दूर तक जाती हैं नज़रें,
जब तलक के
जाने पहचाने चेहरे
बदल नहीं जाते.
धुंधली आकृतियों में.

स्वप्न आँखों में
और होठों पर
ढेर सारे वादे धरे
इक चेहरा
निहारती रही हूँ मैं.

कई बरसों से,
इस सड़क के किनारे के,
इस घर के दरवाजे पर
लौटते कदमों की
कोई आहट नहीं सुनी मैंने.
और अब
बीते बरस तुम.

फिर वही स्वप्न
और फिर वैसे ही वादे लिए.

लौट आओ बेटा!
इस सड़क का
कोई दूसरा छोर नहीं है.
यह सड़क
लौटती नहीं कभी.

इस सड़क पर,
दूर की कोई धुंधली आकृति
पास आकर बदलती नहीं
जाने-पहचाने चेहरे में.

लौट आओ,
के समय रहते
पहचान सकूँ तुम्हें,
लौट आओ,
इससे पहले के
सड़क का धुंधलापन
मेरी निगाहों में उतर आये.
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: राकेश जाज्वल्य.

1 comment:

Unknown said...

ma.n ke dil ki vyatha ko aapane bakhubi shabdo.n me utara hai......aaj ki pratiyogita bhari duniya me bachchhe ki umra badhane ke saath saath ma.n ki aankho.n me bete ka intazar badata hi jata hai......aur wo waqt kabhi nahi aata jub beta laut ke ghar aata hai.......