आतंक
--------------
वे हँसते रहे,
लोग मरते रहे,
लहू बहता रहा.
गिद्ध से पैने नाखूनों से,
शरीर पर लकीरें,
बहता हुआ लहू..
क्या भाई का है..?
या भाईजान का..?
सब सोचते रहे,
वे हँसते रहे।
कोई चीखा है,
मैंने सुना,
आपने सुना,
सब सुनते रहे,
वे हँसते रहे।
मरते रहेंगे लोग,
सड़ती रहेंगी लाशें,
वे अगर चुप न हुए..
तो मौत के इंतज़ार में,
हम सब भी हँसने लगेंगे.
--------------------
: राकेश जाज्वल्य.
No comments:
Post a Comment