Tuesday, November 10, 2009

शिकायत........

मेरे दोस्त, मेरा ज़ख्म खुला छोड़ने से पहले,
मेरे होंठ सी गए थे, साथ छोड़ने से पहले.

है ज़िन्दगी से मुझको बस इतनी शिकायत,
क्यूँ तोड़ दीं उम्मीदें, दम तोड़ने से पहले.

थी बात महज़ वक्त की, जिंदा था शहर में,
मिल तो सभी से आया, घर छोड़ने से पहले.

नए हुजुर कुछ अलग इन्साफ तलब थे,
खिंच लेते थे जुबाँ, कुछ बोलने से पहले.

जंगल में गूँजी चीख़ महज़ चीख़ नहीं थी,
लगाकर गयी थी आग, जहाँ छोड़ने से पहले.
------------------------------------------
: राकेश जाज्वल्य.

3 comments:

विभूति" said...

बहुत ही सुन्दर रचना.... ....

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सुन्दर प्रस्तुति...
सादर....

Manav Mehta 'मन' said...

सुन्दर रचना ...