आज-कल की चीजों का
कोई भरोसा नहीं.
शर्ट की जेब पर फैला
यह लाल रंग देखकर,
बस यही ख्याल आता है.
शर्ट की जेब में
एक छोटी डायरी,
कुछ रसीदें,
थोडा सा चिल्हर,
लाल-नीली दो पेनें
और हाँ,
तुम्हारा
एक पुराना ख़त भी
रख लिया था मैंने,
घर से निकलते-निकलते.
जरा देखूं तो सहीं...
यह मेरा पेन...तो..
बिलकुल ठीक है,
तो फिर..........
कमबख्त,
यह दिल ही रिसा होगा.
सच ही है !
अब कोई भरोसा नहीं रहा,
आज- कल की चीजों का.
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: राकेश जाज्वल्य.
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