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नींद भी, ख्वाब भी, है रात भी उसी की ,
चाहेगा जब भी वो, ये आँखें मूंद लूँगा मै.
काँधों पे अपने बस मुझे इक नींद की मोहलत देना...
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: राकेश
नींद भी, ख्वाब भी, है रात भी उसी की ,
चाहेगा जब भी वो, ये आँखें मूंद लूँगा मै.
काँधों पे अपने बस मुझे इक नींद की मोहलत देना...
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: राकेश
4 comments:
waah sundar triveni....
काँधों पे अपने बस मुझे इक नींद की मोहलत देना...
वाह वाह.
wah wah
bahut khub
फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
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