Friday, June 4, 2010

मोहलत .....


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नींद भी, ख्वाब भी, है रात भी उसी की ,
चाहेगा जब भी वो, ये आँखें मूंद लूँगा मै.

काँधों पे अपने बस मुझे इक नींद की मोहलत देना...
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: राकेश

4 comments:

दिलीप said...

waah sundar triveni....

Dev K Jha said...

काँधों पे अपने बस मुझे इक नींद की मोहलत देना...

वाह वाह.

माधव( Madhav) said...

wah wah

Shekhar Kumawat said...

bahut khub



फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई