यहाँ हैं.. मेरी ग़ज़लें और कवितायेँ......
कितनी भी कोशिश करें, चाहें..पी लें.....
सूखती नहीं मगर..खारे पानी की झीलें.
Thursday, November 5, 2009
तुम भी ना.......!
आसमान, सुबह तलक था जो कोरे कागज के जैसा, शाम होते ही , कहीं से नीला और कहीं- कहीं से गुलाबी नज़र आता है, तुमने जरुर आज फिर, नेलपालिश लगी उँगलियों से, आसमान में, मेरे ख़त के पुर्जे उड़ाए है. --------- :राकेश जाज्वल्य.
1 comment:
bahut achchha likha hai sir aapane.......itana achchha kaise soch lete hai aap.........
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