त्रिवेणी के लिए lines लिखी थी ......बदल कर ग़ज़ल हो गयीं .....
तुम्हारी मुहब्बत को यूँ तरसा हूँ मैं.
बनकर ओस निगाहों से बरसा हूँ मैं.
कुछ खिड़कियाँ हैं, दरवाजें हैं, दीवारें भी,
कब तुम्हारे बिना इक घर सा हूँ मैं.
मुझको क़त्ल करने लगी हैं चौपालें भी,
मैं मुहब्बत बन गया हूँ, डर सा हूँ मैं.
तुम जो चाहो तो भी ना रुक पाउँगा,
हो गया हूँ पैदा अब तो ज़र सा हूँ मैं.
कोई वादा था तेरा फिर आऊंगा,
तब से राहों पर थमा हूँ, अरसा हूँ मैं.
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राकेश जाज्वल्य.
4 comments:
कोई वादा था तेरा फिर आऊंगा,
तब से राहों पर थमा हूँ, अरसा हूँ मैं.
kya bat he bahut khub
तुम्हारी मुहब्बत को यूँ तरसा हूँ मैं.
बनकर ओस निगाहों से बरसा हूँ मैं.
वाह! बहुत बढिया।
bahut khoob...
बहुत बढ़िया...
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