Monday, May 17, 2010

इक त्रिवेणी..




वो भी क्या दिन थे, हर इक सांस गुलाबी रहती थी,
गए जो तुम, दिन वो गुलाबों वाले चले गए...........

तुम जो आओ, तो इन लबों पे फिर...ख़ुश्बू का मौसम आये.
.....
: राकेश जाज्वल्य.