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गिराये हैं ख्वाब गीले... पीले पत्तों की आड़ में,
आज फिर दरख्तों तले मिटटी में नमी है।
: राकेश जाज्वल्य.
गिराये हैं ख्वाब गीले... पीले पत्तों की आड़ में,
आज फिर दरख्तों तले मिटटी में नमी है।
सदियाँ हुईं ...सुना है.....यहाँ सुखा नहीं पड़ा।
***: राकेश जाज्वल्य.
2 comments:
waah ek shaandaar tiveni...
बहुत उम्दा!!
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