कभी गुस्सा कभी ठिठोली सी।
तेरी बातें पकी निम्बोली सी।
मेरा चेहरा हुआ तेरा चेहरा,
मेरी बोली भी तेरी बोली सी।
जाने क्या देखा तुमने आँखों में,
हुई रंगीन तुम तो होली सी।
चाँद भी खिलखिला के हंस बैठा,
तू भी शरमाई बन के भोली सी।
बजी पायल तुम्हारी दुल्हन सी,
हुई बाहें भी मेरी डोली सी।
---------------------- --------
: राकेश जाज्वल्य
5 comments:
वाह! सचमुच बेहतरीन....
बधाई ऐसी लाजवाब कविता के लिए...
कभी गुस्सा कभी ठिठोली सी।
तेरी बातें पकी निम्बोली सी।
:):) खूबसूरत ग़ज़ल...
सुन्दर रचना!
@ all
bahut bahut shukriya aap sab ka.
दिल को छू रही है यह कविता .......... सत्य की बेहद करीब है ..........
Post a Comment