मुझको अक्सर गर्म हवा सी तू लगती है।
सुना है इश्क़-मुहब्बत में भी लू लगती है।
चाँद, समंदर, बारिश, कलियाँ, तितली, धूप,
मुझको हर इक शय में तू ही तू लगती है।
पेड़ों को पानी देना जब से सब भूले,
तब से देखा तपी- तपी सी भू लगती है।
चाँद की आँच में सपनों के भूने दानों सी,
घर भर में फैली तेरी ख़ुश्बू लगती है।
जब भी दिख जाती है धानी चुनरी ओढ़े,
मुझको तू मेरी मम्मी की बहू लगती है।
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: राकेश जाज्वल्य
2 comments:
jabardast prastuti
achchi ghazal hai.
gud
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