Saturday, May 22, 2010

नमी......

***
गिराये हैं ख्वाब गीले... पीले पत्तों की आड़ में,
आज फिर   दरख्तों तले  मिटटी में नमी है।


सदियाँ  हुईं  ...सुना है.....यहाँ  सुखा नहीं पड़ा।
***
: राकेश जाज्वल्य.

2 comments:

दिलीप said...

waah ek shaandaar tiveni...

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!!