Wednesday, May 26, 2010

तेरी बातें पकी निम्बोली सी....

कभी गुस्सा कभी ठिठोली सी।
तेरी बातें पकी निम्बोली सी।

मेरा चेहरा हुआ तेरा चेहरा,

मेरी बोली भी तेरी बोली सी।

जाने क्या देखा तुमने आँखों में,

हुई रंगीन तुम तो होली सी।

चाँद भी खिलखिला के हंस बैठा,

तू भी शरमाई बन के भोली सी।

बजी पायल तुम्हारी दुल्हन सी,

हुई बाहें भी मेरी डोली सी।
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: राकेश जाज्वल्य

5 comments:

Satish Chandra Satyarthi said...

वाह! सचमुच बेहतरीन....
बधाई ऐसी लाजवाब कविता के लिए...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कभी गुस्सा कभी ठिठोली सी।
तेरी बातें पकी निम्बोली सी।

:):) खूबसूरत ग़ज़ल...

Udan Tashtari said...

सुन्दर रचना!

RAKESH JAJVALYA राकेश जाज्वल्य said...

@ all

bahut bahut shukriya aap sab ka.

संजय भास्‍कर said...

दिल को छू रही है यह कविता .......... सत्य की बेहद करीब है ..........