Monday, May 31, 2010

जरा खुल के कहो.........

सहमे - सहमे ना करो बात, जरा खुल के कहो।
दिन क्यूँ लगने लगी है रात, जरा खुल के कहो।

अभी डोर इन रिश्तों के टूटे भी नहीं हैं,
अभी दामन इन हाथों से छूटे भी नहीं हैं,
अभी आंधी इन राहों में आई भी नहीं है,
अभी घोर बदलियाँ भी छाई ही नहीं है,
अभी काबू में हैं हालत, जरा खुल के कहो।
सहमे- सहमे ना करो बात, जरा खुल के कहो।

इससे पहले की किसी से कोई प्यार ना रहे,
इससे पहले की ख़ुशी का इन्तेजार ना रहे,
इससे पहले की दिल किसी का तलबगार ना रहे,
इससे पहले की आँगन में बहार ना रहे,
इससे पहले की बिगड़े बात, जरा खुल के कहो,
सहमे - सहमे ना करो बात, जरा खुल के कहो।

फिर से क्यूँ ना रिश्तों को हम नया-सा मोड़ दें,
फिर से क्यूँ ना हम ख्वाबों से नाता जोड़ लें,
फिर से क्यूँ ना कुछ बंधन हम हंस के तोड़ दें,
फिर से क्यूँ ना हम दुनिया दिल के बाहर छोड़ दे,
फिर से क्यूँ ना हो शुरुआत, जरा खुल के कहो,
सहमे - सहमे ना करो बात, जरा खुल के कहो।

: राकेश जाज्वल्य
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1 comment:

Jandunia said...

बहुत सुंदर